22 तीर्थकार नेमिनाथ ,वैचारिक तथ्य

22 तीर्थकार नेमिनाथ ,वैचारिक तथ्य

 आपने अकबरनामा अबुल फज़ल की और चांद मियाँ की साईं चरित्र की किताबें तो अवश्य पढी होगी, जिसमे किस तरह उनके चमत्कार बताकर महान बताने का प्रयास किया गया । किस तरह चापलूसी व झूठे तर्क देकर प्रशंसा की गई । ठिक इसी तरह देवदत्त पटनायक मायथोलाजी ने श्रीकृष्ण व महाभारत से जुड़े तथ्यों को मनगढ़ंत तौर पर गढ कर जैन धर्म की प्रशंसा की । 

आइए अब हम देवदत्त पटनायक की बातो का संदर्भ प्रंसग सहित व्याख्या करते हैं 👉


देवदत्त कहते हैं ,हिंदू धर्म की तरह जैन धर्म भी स्वयं को सनातन धर्म मानता है । तात्पर्य जिसकी न कोई शुरुआत है और न कोई अंत, 👇 इसका तात्पर्य जैन धर्म भी चारो युगों को मानता है, जिस तरह हिंदू धर्म में चार युगों का उल्लेख है । लेकिन हिंदू धर्म आस्तिक और जैन धर्म नास्तिक है, तो सनातन धर्म को दोनों में से कोई एक मानेगा । अर्थात् हिंदू धर्म ही सनातन धर्म को मानेगा ...

देवदत्त कहते हैं  👉 जैन महाभारत अनुसार वासुदेव की पत्नी देवकी ने आठ पुत्रों को जन्म दिया । पहले छ: बच्चे जिसे कंस ने मार दिया था उसे एक व्यापारी की पत्नी ने ले लिया । मरे हुए छह बच्चे जैन साधु बन गए 👇 इसका तात्पर्य मरा हुआ व्यक्ति जैन साधु कैसे बन सकता है..? यह तो चूर्ण हुआ । भारत में वायरस के संक्रमण से कई लोगों की मौतें हो रही है कल चलकर यह भी जैन साधु बन जाएंगे, मनगढ़ंत कहानी ।

  

पटनायक कहते हैं  👉 कृष्ण के चचेरे भाई 22 वे तीर्थंकर नेमीनाथ है । वह विवाह में भोजन के लिए वध हेतु जो जानवर लाए थे ,उनके कष्टों को सहन नहीं कर पाए और साधु बन गए । 👇 महाभारत में मांस खाने वालों पर कई श्लोक लिखे हैं । श्रीकृष्ण के किसी भी परिवार के मांस खाने का उल्लेख नहीं है । जानवरों का वध करने पर पाप के भागीदार बनते थे यह तो मनगढ़ंत तथ्य है ।


देवदत्त कहते हैं 👉 द्रोपदी जो माला अर्जुन को पहनाती है, वह टूट जाती हैं और कुछ फूल अन्य चार भाइयों पर गिर जाते हैं । इससे अफवाह फैलती हैं कि वह सभी भाइयों की पत्नी हैं ।👇 आपने महाभारत के उस दृश्य को भी देख लेते जब कुन्ती के मुख से द्रोपदी को स्वयंवर से अर्जुन के जीतकर लाने पर माता का आशीर्वाद लेने आते हैं और कुन्ती कहतीं हैं जो भी जीतकर लाया है उसे आपस में बांट लो । यह कोई अफवाह नहीं मां के मुख से बिना देखे निकले शब्दों को आजीवन वचन स्वरूप पालन किया गया कड़वा सत्य है ।


पटनायक कहते हैं 👉 द्रोपदी से छेड़-छाड़ करने वाले किचक को दंड देते हैं ,लेकिन वह उसे मारते नहीं है । किचक एक जैन साधु बन जाता है और अंततः मुक्त हो जाता हैं । 👇 महाभारत के अनुसार  किचक का वध दुर्योधन, कर्ण, श्रीकृष्ण, भीम, और भीष्म पितामह के अलावा कोई मार नहीं सकता था । जब भीम अज्ञातवास में किचक का वध करते हैं तो शकुनि मामा को यह पता चल जाता है कि पांडव राजा विराट के यहाँ छुपे हुए हैं इसलिए हस्तिनापुर  उन पर आक्रमण करते हैं । जब किचक मरता नहीं तो फिर हस्तिनापुर से दुर्योधन युध्द करने क्यों आता..?? जब किचक मर गया तो जैन साधु बना कैसे ..?? यह तो जैन धर्म की चापलूसी हुई ।


देवदत्त कहते हैं 👉 कृष्ण जरासंध की ओर पहिया फेंककर उसे मार डालते हैं ।👇 जरासंध जिसका वध न शस्त्र से न ही अस्त्र से हो सकता था फिर पहिए से मरने का ढोंग देवदत्त पटनायक ने रचा कैसे ..? जरासंध को श्रीकृष्ण ने सत्रह बार युध्द में परास्त किया लेकिन छोड़ दिया । जरासंध का वध मात्र मलयुध्द से हो सकता था जिसके लिए भीम, अर्जुन और श्री कृष्ण जरासंध के राज्य में जाते हैं । भीम मलयुध्द में श्रीकृष्ण के संकेतानुसार पेड़ की पत्ती की तरह उसके दो टुकड़े कर देते हैं और दोनों टूकडो को विपरीत दिशा में फेकते हैं, तब जाकर जरासंध की मृत्यु होती है, फिर इसमें नेमीनाथ के पहिया रोकने का विचार घुसेड़ा किसने ..?

पांडव दक्षिण जाकर दक्षिणी मथुरा को स्थापित करते हैं और अंततः जैन साधु बन जाते हैं ।👇 महाभारत के अनुसार श्री कृष्ण कर्ण के पुत्र को हस्तिनापुर के सिहांसन बैठाकर सभी पांडव हिमालय की ओर प्रस्थान करते हैं ।

देवदत्त पटनायक ने शुरुआत से लेकर अंत तक जैन धर्म की चापलूसी और महाभारत के दृश्यों को मनगढ़ंत बताया । उनका बहुत-बहुत आभार जिनके तथ्यों को हमारे द्वारा उजागर करने की कोशिश की गई ।🙏🙏

संक्षेप में इतना ही ....



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