आप सभी जानते हैं, सिंकदर विश्व विजय की महत्वाकांक्षा को लेकर भारत की ओर आया था । जिसके समक्ष चंद्रगुप्त मौर्य महान सम्राट थे । उसमें असाधारण योग्यता और प्रतिभा थी । इससे उसका घमंड काफी बढ़ गया था ।
विजय के उन्माद में न जाने कितने राज्यों और कस्बों को उजाड डाला था । उसने अपार धन संपदा लूटी और सैनिकों को मालामाल कर दिया था ।
इसी तरह एक बार उसने एक नगर पर आक्रमण कर दिया लेकिन उस नगर में महिलाएँ और बच्चे ही रहते थे । क्योंकि उस नगर में रहने वाले नौजवान पुरुष और बूढ़े युध्द में मारे जा चुके थे । सभी महिलाएँ असहाय हो चुकी थी और उनके पास स्वयं की आत्मरक्षा के लिए कोई साधन नहीं बचा था ।
शस्त्रविहिन और असहाय महिलाओं से सिंकदर युध्द कैसे करता, यह बात सिंकदर के दिमाग में घुम रही थी । उस वक्त उसके गिनती के सैनिक थे बाकी की विशाल सेना उसके पीछे आ रही थी ।
उसने एक घर के आगे अपना घोड़ा रोक दिया । कई बार द्वार पीटने के बाद बड़ी कठिनाई से दरवाज़ा खुला और लाठी टेकते हुए एक बुढ़िया बाहर आयी । सिंकदर बोला घर में जो कुछ भी खाना रखा हो ,वह सब लेकर आओ । मुझे भूख लगी है ।
बुढ़िया घर के भीतर जातीं हैं और थोड़ी देर में एक कपड़े से ढका हुआ थाल सिंकदर के समक्ष दे देतीं हैं ।
सिंकदर ने जैसे ही थाल के उपर से कपड़ा हटाया तो देखा कि उसमें सोने के पुराने गहने रखें हुए थे । उसे क्रोध आ गया और बोला बुढ़िया यह क्या लाईं हो ? मैने तुझसे खाना मांगा था, क्या अब मै इन गहनों को खाऊंगा ?
बुढ़िया ने कहा 👉 तू सिंकदर ही है न ? तेरा नाम तो सुना था आज देख भी लिया है । यह भी सुना था कि सोना ही तेरा भोजन है । इसी भोजन की तलाश में तू यहाँ आया था न । यदि तेरी भूख रोटियों से मिटती तो क्या देश में रोटियां नहीं थी ? फिर दूसरों की रोटियाँ छिनने की जरुरत तूझे क्यों पड़ी ? एक मां पूछ रही है बता ।
सिंकदर का घमंड का शिखर टूटकर नीचे आ गया । वह बुढ़िया के समक्ष नतमस्तक हो गया । बुढ़िया ने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा, उसे भोजन भी करा दिया ।
सिंकदर भोजन करके चला गया लेकिन उसने नगर में किसी को भी कोई नुकसान नहीं पहुंचाया । उसने नगर के प्रमुख द्वार पर एक शिलालेख लिखवाया 👉 जिसमें लिखा था,
अज्ञानी सिंकदर को इस नगर की एक महान् वृध्दा ने अच्छा पाठ पढाया ।
0 टिप्पणियाँ